UNIFORM CIVIL CODE IN UTTARAKHAND

समान नागरिक संहिता

समान नागरिक संहिता का अर्थ है, देश के हर नागरिक पर एक समान कानून लागू होना, चाहे वह किसी भी धर्म या जाति का हो। अभी देश में अलग-अलग मजहबों के लिए अलग-अलग पर्सनल लॉ हैं, लेकिन समान नागरिक संहिता लागू होने के बाद सभी मजहबों के लोगों को एक जैसे कानून का पालन करना पड़ेगा।

हमारे देश में अभी धर्म और परंपरा के नाम पर अलग-अलग नियमों को मानने की छूट है, लेकिन यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होने के बाद विवाह, तलाक, बच्चा गोद लेने और संपत्ति के बंटवारे जैसे विषयों में सभी नागरिकों के लिए नियम एक-समान होंगे। वैसे इसके लागू होने से नागरिकों के खान-पान, पूजा-इबादत, वेशभूषा आदि धार्मिक परंपराओं पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा।

यूनिफॉर्म सिविल कोड का मुस्लिम समाज पुरजोर विरोध करता रहा है। जब 1951 में डा. बी.आर. अंबेडकर और तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने हिंदू समाज के लिए हिंदू कोड बिल लाने की कोशिश की थी, तब भी उसके खिलाफ आवाजें उठी थीं। साथ ही केवल एक धर्म विशेष के लिए ऐसा कानून लाने पर सवाल भी उठाए गए थे।

यूनिफॉर्र्म सिविल कोड का विरोध करने वालों का तर्क है कि इसके द्वारा सभी धर्मों पर हिंदू कानून लागू कर दिया जाएगा।

समान नागरिक संहिता महिलाओं को समान अधिकार दिलाएगी। इसलिए इसे अवश्य लागू करना चाहिए।

महिलाओं के उत्थान के लिए समान नागरिक संहिता लागू करना जरूरी है।

देवभूमि उत्तराखंड में सभी को समान अधिकार मिलें इसके लिए समान नागरिक संहिता लागू करने की सरकार की पहल स्वागत योग्य है।

धार्मिक भेदभाव से ऊपर उठने के लिए समान नागरिक संहिता लागू होनी ही चाहिए।

धार्मिक समरसता बनाए रखने के लिए समान नागरिक संहिता ही एकमात्र विकल्प है। इसे शीघ्र लागू करना चाहिए।

कुल आबादी में 50% आबादी महिलाओं की है। उन्हें समान अधिकार मिलें, इसके लिए समान नागरिक संहिता ही उपाय है।

महिला सशक्तिकरण की बात करने वालों को समान नागरिक संहिता का समर्थन करना चाहिए।

जो समान नागरिक संहिता का विरोध करते हैं, वे महिलाओं को अपने बराबर नहीं देखना चाहते। ऐसे लोग समाज के लिए कोढ़ हैं।

समान नागरिक संहिता के बिना भेदभाव को समाप्त करना असम्भव है।

महिलाओं के शोषण को रोकने के लिए समान नागरिक संहिता बहुत ही जरूरी है।

कहीं एक आदमी चार महिलाओं से शादी करता है और कहीं चार पुरुष एक महिला से। इस सबको रोककर महिलाओं को समान अधिकार दिलाने के लिए समान नागरिक संहिता बनानी ही चाहिए।

समान नागरिक संहिता के लिए मेरा समर्थन है क्योंकि हमारा संविधान इसके पक्ष में है।

प्रिय प्रदेशवासियों,

उत्तराखण्ड राज्य में नागरिक मामलों से सम्बन्धित कानूनों व समान नागरिक संहिता विषय पर उत्तराखण्ड के नागरिकों एवं संस्थाओं से सुझाव अपेक्षित हैं।

नीचे दिये गए लिंक पर क्लिक कर अपने सुझाव 7 अक्टूबर 2022 तक अवश्य उपलब्ध करायें।
Link : https://ucc.uk.gov.in

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    समान नागरिक संहिता कानून उत्तराखंड के लिए नहीं बल्कि पूरे देश के लिए एक कानून एक संविधान होना बहुत जरूरी है अगर आज हमने उत्तराखंड यह पूरे भारत में समान नागरिकता कानून लागू नहीं किया तो आने वाले भविष्य और हमारे आने वाली पीढ़ी भारत में ही सेकंड सिटीजन बनने के लिए तैयार रहेगी इसका उदाहरण हमने जम्मू-कश्मीर पश्चिम बंगाल केरल पांडुचेरी तमाम भारत के छोटे-छोटे इलाकों में देखा जहां मुस्लिमों की जनसंख्या तीव्र गति से बड़ी और जहां जहां मुस्लिमों की जनसंख्या तीव्र गति से बड़ी वहां वहां हिंदुओं का किस प्रकार से दमन हुआ यह हमने कश्मीर से देखा है अगर आज में हमने उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता कानून लागू नहीं किया तो आने वाले समय में उत्तराखंड भी कश्मीर बनने में देरी नहीं और हमें अपनी बहन बेटियों को बचाने का कोई उपाय हमारे पास नहीं रहेगा क्योंकि वह जिहाद के मुद्दे पर आगे बढ़ेंगे और उनके लिए उनका धर्म ही सर्वोपरि है और जो उनके धर्म को नहीं मानेगा उन्हें या तो उनका कत्ल कर दिया जाएगा या उनका धर्म परिवर्तन करके उन्हें मुसलमान बना दिया जाएगा इसलिए अगर अभी भी उत्तराखंड सरकार ने समान नागरिक संहिता लागू नहीं किया तो हमारा उत्तराखंड कश्मीर बनने में देर नहीं लगेगा

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Updated: September 29, 2022 — 10:20 am

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